Monday, March 30, 2009

खामोशी कोई समझे तो मज़ा और है

इंतज़ार कराओ हमे इतना

कि वक़्त के फैसले पर अफ़सोस हो जाये

क्या पता कल तुम लौटकर आओ

और हम खामोश हो जाएँदूरियों से फर्क पड़ता नहीं

 

बात तो दिलों कि नज़दीकियों से होती है

दोस्ती तो कुछ आप जैसो से है

वरना मुलाकात तो जाने कितनों से होती हैदिल से खेलना हमे आता नहीं

इसलिये इश्क की बाजी हम हार गए

 

शायद मेरी जिन्दगी से बहुत प्यार था उन्हें

इसलिये मुझे जिंदा ही मार गएमना लूँगा आपको रुठकर तो देखो,

जोड़ लूँगा आपको टूटकर तो देखो।

नादाँ हूँ पर इतना भी नहीं ,

 

थाम लूँगा आपको छूट कर तो देखो।लोग मोहब्बत को खुदा का नाम देते है,

कोई करता है तो इल्जाम देते है।

कहते है पत्थर दिल रोया नही करते,

और पत्थर के रोने को झरने का नाम देते है।

 

भीगी आँखों से मुस्कराने में मज़ा और है,

हसते हँसते पलके भीगने में मज़ा और है,

बात कहके तो कोई भी समझलेता है,

पर खामोशी कोई समझे तो मज़ा और है.

 

- Kadia (Orkut)

- Loveable Poet

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