Tuesday, December 15, 2009

शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?

शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?

जब यही जीना है दोस्तों तो फ़िर मरना क्या है?

 

पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है

भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है?

 

सीरियल्स् के किर्दारों का सारा हाल है मालूम

पर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुर्सत कहाँ है?

 

अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यूं नहीं?

108 हैं चैनल् फ़िर दिल बहलते क्यूं नहीं?

 

इन्टरनैट से दुनिया के तो टच में हैं,

लेकिन पडोस में कौन रहता है जानते तक नहीं.

 

मोबाइल, लैन्डलाइन सब की भरमार है,

लेकिन जिग्ररी दोस्त तक पहुँचे ऐसे तार कहाँ हैं?

 

कब डूबते हुए सुरज को देखा त, याद है?

कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है?

 

तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़् के करना क्या है

जब् यही जीना है तो फ़िर मरना क्या है?

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Monday, December 14, 2009

क्या लिखूँ कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ या दिल का सारा प्यार लिखूँ

 

क्या लिखूँ कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ या दिल का सारा प्यार लिखूँ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰

कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखू या सापनो की सौगात लिखूँ ॰॰॰॰॰॰

मै उगता सुरज लिखू या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ ॰॰॰॰॰॰

वो डूबते सुरज को देखूँ या उगते फूल की मुस्कान लिखूँ,

वो पल मे बीते साल लिखू या सादियो लम्बी रात लिखूँ,

मै आपको अपने पास लिखू या दूरी का ऐहसास लिखूँ

मै अन्धे के दिन मै झाँकू या आँखों की मै रात लिखूँ॰॰॰॰॰॰

मीरा की पायल को सुन लुँ या गौतम की मुस्कान लिखूँ

बचपन मे बच्चौ से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँ

सागर सा गहरा हो जाॐ या अम्बर का विस्तार लिखूँ,

वो पहली -पहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ,

सावन कि बारिश मेँ भीगूँ या आँखों की बरसात लिखूँ॰॰॰॰॰॰

गीता का अर्जुन हो जाॐ या लकां रावन राम लिखूँ॰॰॰॰॰

मै हिन्दू मुस्लिम हो जाॐ या बेबस ईन्सान लिखूँ॰॰॰॰॰

मै एक ही मजहब को जी लुँ ॰॰॰ या मजहब की आँखें चार लिखूँ॰॰॰

कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ या दिल का सारा प्यार लिखूँ..

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Friday, December 4, 2009

નદીની રેતમાં રમતું નગર મળે ન મળે,

   

નદીની રેતમાં રમતું નગર મળે ન મળે,

ફરી આ દ્રશ્ય સ્મૃતિપટ ઉપર મળે ન મળે.


ભરી લો શ્વાસમાં એની સુગંધનો દરિયો,

પછી આ માટીની ભીની અસર મળે ન મળે.

પરિચિતોને ધરાઈને જોઈ લેવા દો,

આ હસતા ચહેરા; આ મીઠી નજર મળે ન મળે.

ભરી લો આંખમાં રસ્તાઓ, બારીઓ, ભીંતો,

પછી આ શહેર, આ ગલીઓ, આ ઘર મળે ન મળે.

રડી લો આજ સંબંધોને વીંટળાઈ અહીં,

પછી કોઈને કોઈની કબર મળે ન મળે.

વળાવા આવ્યા છે એ ચ્હેરા ફરશે આંખોમાં,

ભલે સફરમાં કોઈ હમસફર મળે ન મળે.

વતનની ધૂળથી માથુ ભરી લઉં ‘આદિલ’,


અરે આ ધૂળ પછી ઉમ્રભર મળે ન મળે.

 

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